History of Ayodhya (अयोध्या का इतिहास)


अयोध्या का इतिहास 

सरयू नदी के तट पर बसे इस नगर की स्थापना रामायण अनुसार राजा मनु द्वारा की गई थी। ब्रह्माजी के पुत्र मरीचि से कश्यप का जन्म हुआ और कश्यप से विवस्वान हुए और विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु हुए।  
वैवस्वत मनु के 10 पुत्र थे, जिसमे उनके पुत्र इक्ष्वाकु कुल का ही ज्यादा विस्तार हुआ। इक्ष्वाकु कुल में कई महान प्रतापी राजा, ऋषि, अरिहंत और भगवान हुए। इक्ष्वाकु कुल में ही आगे चलकर प्रभु श्रीराम हुए। 

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अयोध्या की स्थापना

कहा जाता है कि जब राजा मनु ने अपने लिए एक नगर के बनाने की बात जब ब्रह्मा जी से कही तो वे उन्हें विष्णुजी के पास ले गए और विष्णुजी ने उन्हें साकेत में एक उचित स्थान बताया। विष्णुजी ने इस नगरी को बसाने के लिए देवशिल्‍पी विश्‍वकर्मा को राजा मनु के साथ भेजा था।  

अयोध्या का क्षेत्रफल 
प्राचीन उल्लेखों के अनुसार इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था। उत्तर भारत के तमाम हिस्सों में जैसे कौशल, कपिलवस्तु, वैशाली और मिथिला आदि में अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के शासकों ने ही राज्य कायम किए थे।अयोध्या रघुवंशी राजाओं की बहुत पुरानी राजधानी थी। पहले यह कौशल जनपद की राजधानी थी। वाल्मीकि रचित रामायण  में उल्लेख मिलता है कि अयोध्या का क्षेत्रफल 12 योजन लम्बा और 3 योजन चौड़ा  था।  

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भगवान राम का जन्म 

भगवान राम विष्णु जी के अवतार हैं और रामायण अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ ने पुत्र की कामना से यज्ञ कराया था, जिसके फलस्वरूप चार पुत्रों का जन्म हुआ। श्रीराम का जन्म देवी कौशल्या के गर्भ से हुआ था, अतः द्वापरयुग का आयु ८,६४,००० वर्ष तथा कलयुग का आयु  ५,१०० वर्ष को जोड़ दिया जाये तो लगभग श्रीराम का जन्म ८,६९,१०० वर्ष पहले त्रेतायुग में हुआ था। भगवान राम शान्त स्वाभाव के वीर पुरुष थे, उन्होंने मर्यादाओं का हमेशा ध्यान रखा, इसी कारण  उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम  से भी जाना जाता है।  

अयोध्या के रमणीय स्थल 

अयोध्या में घाटों और मंदिरों की प्रसिद्ध दूर-दूर तक  है। सरयू नदी यहीं से होकर बहती है। सरयू नदी के किनारे अनेक प्रमुख घाट हैं। इनमें सीता रसोई ,पापमोचन घाट,गुप्त द्वार घाट, कौशल्या घाट,लक्ष्मण घाट, कैकेयी घाट, आदि विशेष  हैं।

दीपावली का महत्व 

ऐसा माना  जाता है कि  दीपावली का पर्व जब प्रभु श्रीराम अयोध्या लौटे तो सभी अयोध्यावासी उनके आगमन के लिए उमड़ पड़े थे। कहते हैं कि कार्तिक अमावस्या को भगवान श्रीराम अपना चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे थे, तो  अयोध्यावासियों ने श्रीराम के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियां मनायी गयीं थीं,  संपूर्ण शहर को  दीपों से सजाया गया था और उत्सव मनाया गया था।

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हनुमान गढ़ी का  महत्व 
ऐसी मान्यता है कि भगवान राम जब लंका जीतकर अयोध्या लौटे थे, तो उन्होंने अपने परम भक्त हनुमान को रहने के लिए यही स्थान दिया था। कहा जाता है कि जो भी भक्त दर्शन के लिए अयोध्या आएगा, उसे हनुमान का दर्शन किये बिना उसका पूजा-पाठ  पूर्ण नहीं होगा।
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अयोध्या एक पावन नगरी है, जहां लोग भगवान राम का दर्शन करने आते हैं तथा सरयू नदी में लोग स्नान करके पुण्य कमाते है। अयोध्‍या आकर भगवान राम के दर्शन के अलावा भक्तों को 76 सीढ़ियों को चढ़ करके भक्त पवनपुत्र हनुमान जी के दर्शन मिलते  हैं।  

हनुमान मंदिर के निर्माण का इतिहास बहुत ही पुराना है लेकिन कहा जाता कि अयोध्या अनेको बार बसी, लेकिन हनुमान टीला आज भी अपने जगह हमेशा से वैसा ही है, जो आज हनुमानगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है, और कोई भी भक्त अयोध्या में आता है तो हनुमान दर्शन किये  बिना नहीं जाता है।  






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